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अगले ढाई साल / असद ज़ैदी

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अगले ढाई साल में कुछ तय नहीं होने जा रहा
भविष्य अा चुका है
जब उसने कन्धे पर हाथ रखा तुम कहीं अौर देख रहे थे
जब उसका टीका तुम्हारे माथे पर लगा तुम हँस रहे थे
वह कौन था जो खोया-खोया-सा टी० वी० देखता था
पराजित और बदहवास-सा बैंक की तरफ़ भागता था
परसों ही तो वह कह रहा था सिस्टम रिबूट हो रहा है
थोड़ा इन्तिज़ार करो
नक्षत्रों का जीवन काल की अवधारणा अन्तरिक्ष की दूरियाँ
तुम्हारे घर से ए० टी० एम० का फ़ासला
तुम्हारे बचपन से अाती हुई कोई रौशनी
सब गड्डमड्ड हैं एक अजीब सी सीटी बजती है कानों में
देखने के तरीक़े जानने की बातें सीखने की इच्छा
सब पर कोई एक्सपायरी डेट छाप दी गई लगती है
उलट-पुलट कर देखते हो इबारत साफ़ पढ़ी भी नहीं जाती
उस खोई हुई औरत को भी आज ही दिखना था
इन्तिज़ार करती हुई भीड़ के बीच
कैशियर पुकारता है सुमनलता बड़ी चपलता से वह उठती है बोलती है — हाँ जी
टोकन देकर पैसे लेकर लौटते हुए वह अचानक तुम्हारे सामने रुकती है —
‘हलो, अाप मुझे पहचान नहीं रहे हैं, मैं अापके पड़ोस में रहती हूँ!’
‘जी’ — कहके तुम अजीब ढंग से मुस्कुराते हो, तुम्हें अब पता नहीं वह कौन है
अौर तुम कहाँ खड़े हो — अतीत में, अनिश्चित भविष्य में, या अटपटे वर्तमान में
भविष्य आ चुका है
अभी अभी तक बहुत कुछ तुम्हारे अनुकूल था
कमल तुम्हारे लिए एक फूल था केसर महज़ एक रंग
चीख़ता हुअा अादमी एक अशालीन उपस्थिति
एक फीकी हँसी रह गई है जो अौर फीकी होती जाती है
कड़वापन, व्यंग्य, कटाक्ष, निंदा सब हुक्मरानों के अहाते में हैं
तुम्हारे पास है क्या, न नुक्कड़ न नाटक
प्रहसन पर भी अब उन्हीं का एकाधिकार है।

अब यही कविता अँग्रेज़ी में पढ़ें
NEXT TWO AND A HALF YEARS

Translated from Hindi by Asad Zaidi

  • * *

What of next two and a half years?
Future is already here.
It tapped you lightly on your shoulder but you were looking elsewhere
When it put a mark of identity on your forehead you laughed.
Who is it then who sits blankly looking at the TV screen
Defeated and desperate rushes towards the bank
Who said only the other day it is just the system rebooting
We must wait?
The life of planets, notions of time, distances in space
Distance of your house from the nearest ATM
A strange light emanating from your largely forgotten childhood
All are mixed up, a strange tune is whistling in your ears.
Ways of seeing, things worth knowing, desire to learn—
All appear stamped with an expiry date.
You turn them over the markings are not very legible.
And then that long lost woman surfaces today
In the middle of the waiting crowd in the bank.
The cashier calls—Sumanlata… she promptly gets up—yes sir
Surrenders her brass token, collects her money, and halts in front of you:
“Hello, you don’t recognise me? I live in the same block as you.”
“Of course,” you respond with a faintly strange smile you are not sure who she is
And where you stand—in the past, at some uncertain moment in future, or in the odd present.
Future is here.
Till a while ago everything was going for you as you liked it, the Lotus
Was just a flower saffron just a colour
And a shouting man an undignified presence.
You laugh an unconvincing laughter that keeps getting fainter.
Bitterness, satire, taunts, denunciation
Are all on the side of those who now rule over you.
What do you have? Neither the street corner nor the act,
They even have monopoly over the daily farce.