भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सड़कें ख़ून से लाल हुईं / तारा सिंह
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:18, 7 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तारा सिंह }} सड़कें ख़ून से लाल हुईं, हुआ कुछ भी नहीं<br> इ...)
सड़कें ख़ून से लाल हुईं, हुआ कुछ भी नहीं
इनसानियत शरम-सार हुई, हुआ कुछ भी नहीं
हर तरफ़ बम के धमाके हैं, चीख है, आगजनी है
मगर सितमगर को आया मज़ा कुछ भी नहीं
राहें चुप हैं, वीरान हैं, दहकती तबाही का मंज़र है
प्रशासन कहती शहर में, हुआ कुछ भी नहीं
राह लाशों का बनाकर सत्ता के सफ़र पर निकलने
वाले कहते, सब ठीक है, हुआ कुछ भी नहीं
ईश्वर करे, तुम्हारे घरों में भी पत्थर गिरे, क़ोहराम मचे
आकाश फ़टे, तब कहना, सब ठीक है, हुआ कुछ भी नहीं