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दिल मशाल बन जाए जलता हुआ / रंजीत वर्मा

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असमानता तब पैदा होती है
जब कोई चीज़ एक के पास होती है
और दूसरे के पास नहीं
कोई ज़रूरी नहीं कि वह धन हो
या सत्ता की ताक़त
वह जाति धर्म रंग या चेहरे की बनावट
या इसी तरह की वह कोई दूसरी चीज़ भी हो सकती है
मसलन वह एक के द्वारा पढ़ ली गई
और दूसरे के द्वारा नहीं पढ़ी जा सकी
कोई किताब भी हो सकती है
कोई ख़बर
कोई मन्त्र कोई सूत्र
कोई जादू-टोना भी वह हो सकता है

हाथ में बन्दूक लिया हुआ आदमी
किसी निहत्थे के सामने असन्तुलन पैदा करता है
और पण्डिताऊ ज्ञान तो प्राचीनतम हथियार है
यह बताने को कि सब बराबर नहीं होते
और यह बात वह
जितनी भाषा में कह सकता है
हो सकता है तुम्हारे पास
उतने शब्द भी न हों
हो सकता है तुम्हें यह भी पता न हो
कि एकतरफ़ा फ़ैसला सुनाए जाने की तैयारी
जब हो चुकी हो पूरी
तो वैसे बुरे वक़्त में
अपना पक्ष ताक़तवर शब्दों में
कैसे रखा जाता है दुनिया के सामने ठीक-ठीक

दरअसल यह सोच की विद्रूपता है
जो असमानता पैदा करती है
एक के पास, दूसरे के पास नहीं होने से
इसका कोई रिश्ता नहीं
इनका श्रेष्ठता से कोई सम्बन्ध नहीं

सबसे ज़्यादा अकड़ में वह दिखता है
जो पूरे आत्मविश्वास से मूर्खतापूर्ण बातें कर लेता है
बल्कि कहना चाहिए कि मूर्खों के पास
जो आत्मविश्वास होता है
उसे कहीं और ढूँढ पाना मुश्किल है
और फिर जो असमानता वह पैदा करता है
वैसी लहूलुहान असमानता कोई पैदा नहीं कर सकता
इतिहास घायल है ऐसे उदाहरणों से

मूर्खों जैसा आत्मविश्वास
आप चाह कर भी अपने अन्दर पैदा नहीं कर सकते

कहने की ज़रूरत नहीं
हम इतिहास के अछोर अन्धेरे समय में खड़े हैं
दिल मशाल बन जाए जलता हुआ
कोई ऐसा बात करो कॉमरेड!