भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसने कहा था / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:34, 7 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिविक रमेश }} मेरे निकट आओ, मेरी महक से महको<br> और सूँघो<br> ...)
मेरे निकट आओ, मेरी महक से महको
और सूँघो
यह किसी फूल या खुशबू ने नहीं
उसने कहा था।
मेरे निकट आओ, मेरा ताप तापो
और सेंको
यह किसी अग्नि या सूर्य ने नहीं
उसने कहा था।
मेरे निकट आओ, मेरी ठंड से शीतल हो जाओ
और ठंडाओ
यह किसी जल या पर्वती हवा ने नहीं
उसने कहा था।
वह कोई रहस्य भी नहीं था
एक मिलना भर था
कुछ ईमानदार क्षणों में खुद से
जो था असल में
रहस्य ही।
वह जो बहुत उजागर है
गठरियों में बाँध उसे
कितना रहस्य बनाए रखते हैं हम।
शायद सोचना चाहिए मुझे
कि उसे
कहना क्यों पड़ा?