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सुप्त मेरे प्राण जागो! / अमरेन्द्र
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सुप्त मेरे प्राण जागो!
शुद्ध मन के ध्यान जागो !
बीज जागो, विटप जागो,
फूल जागो, गंध जागो !
हो पवन के पंख मधुमय
कोष के मकरन्द जागो !
क्षिति, सलिल, आकाश जागो!
अग्नि जागो, वायु जागो,
रूप जागो, रस-परम सब
विश्व भर की आयु जागो!
राग के संग रागिनी तुम,
मानिनी के मान जागो !
शरत् की शोभा जगी है
सामने देवी विहंसती,
चर-अचर जड़ और चेतन
स्नेह से सबको परसती;
छुट रहे हैं ताप तीनों
लोक, गुण औ देव त्राय से,
वत्सला बन अगम सम्मुख
झुक गये हैं सब विनय से;
देश जागो, काल के संग !
लोकहित विज्ञान जागो !