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चुप्पियों के लगे झूले / अमरेन्द्र
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चुप्पियों के लगे झूले,
किस विजन में फूल फूले!
यह निशा अभिसारिका बन
आँख में काजल लगाए,
गूंथ कर सब तारकों को
केश में उनको सजाए;
झाड़ियों की, गिरि-वनों की
चल पड़ी है ओट ले कर,
प्रेम का मधु भार संग में
पीर की कुछ चोट ले कर;
है पवन का मनµजरा-सा
साँवली का चिबुक छू ले !
डर रही है निशा सहमी
काँपती है कृष्ण काया,
ओस के कण-स्वेद तिरते
घिर गई है कुहुक-माया;
पाँव बढ़ते ही नहीं हैं
बेर भी ठहरा हुआ-सा,
जीत जाने किस तरफ हो
है बिछाए भोर पासा।
लौट कर आए कभी न
राह भटके, राह भूले !