भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाग मेरे देश फिर से / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:12, 13 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=दीपक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जाग मेरे देश फिर से,
लौट आए दिन मिहिर-से !
वेद के वे मंत्रा गूंजे,
उपनिषद् की धर्म-वाणी,
बुद्ध की हो कथा घर में,
रश्मियों से युक्त प्राणी;
मन कमल हो भाव-सर में
फिर दया का आचरण हो,
स्वर्ग में सोई हुई जो
उस निधि का अवतरण हो!
आततायी-स्वर-निनादित;
सैन्य-दल निकले शिविर से!
हो दया क्या, दान भी हो
क्षात्रा का पर धर्म ऊपर,
फिर दिखे, देखे सभी जन
क्या है भारत विश्व-भू पर।
ज्ञान के संग कर्मचेता,
वेद के संग में भवानी,
आज भी पाण्डव खड़े तो
आज भी है कर्ण दानी ।
ग्रंथ साहिब हाथ में हो
जब लगी गीता हो सिर से!