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आज वन में कुहुक बोले / अमरेन्द्र
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आज वन में कुहुक बोलेµ
यह मधुर संसार हो ले !
मोगरे के घर बसी हो
सज-सँवर जूही-चमेली,
मोतिया से मिले चुपके
रातरानी की सहेली !
चाँदनी फिसले सुरभि पर
चाँद बढ़ कर फिर उठाए,
पुष्प-रस पर पवन बैठे
प्रीत के मधु छन्द गाए !
भाव के याचक अकिंचन
बंद कब से द्वार, खोले !
प्रात होते जाग भैरव !
दोपहर हिण्डोल डोले !
शाम तक तो मेघ गाये,
और फिर सिर-राग होले !
रात में दीपक जले तो
देर तक जलता रहे यह,
जब तलक न मालकोषी
स्वर मिले, मिलता रहे यह!
रागिनी रागों के मन मंें
पीत, रक्तिम रंग घोले !