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भावना होगी कँवल-सी / अमरेन्द्र
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भावना होगी कँवल-सी,
गीत होंगे सूर-तुलसी ।
स्वाति का घन मन हुआ जब
स्वातिसुत-से बीज अक्षर,
जब ध्वनि भी स्वातिकारी
स्वातिपथ जब छंद के पर;
वाक सुन्दरµवाक-रेखा
मृग-शावक-सा सरल हो,
शब्द ही क्या, व्याकरण भी
स्वाति-विन्दु-सा तरल हो;
गीत पहले नद-नदी है,
हो भले न कलस-कलसी।
गीत, गंगा-सिन्धु-सतलज
लोक से परलोक तक में,
सृष्टि केे आरम्भ से ही
सम सुखों में, शोक तक में;
एक अनहद नाद है यह
दल सहस का अमिय निर्झर,
उन्मनी का ध्यान है यह
जब लगे, तब ही खुले पर;
सौ सहस मधुमास फूटे,
रसवती तब भूमि, अलसी।