भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निनान / सुप्रिया सिंह 'वीणा'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:31, 4 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुप्रिया सिंह 'वीणा' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऐ निरमम, निरमोही सरकार
तोरा की कहि दिहौं गरिया हे।
घरवाली मुखिया बनलै
हम्में घरोॅ के टहलुवा हे।
बुतरू खेलाय छी, खाना बनाय छी,
चैका-बरतन, झाड़ू करै छी।
गली में घूमवोॅ, पान गिलौरी खैबोॅ
सब के सब होय गेलै सपनमा हे।
पत्नी हाकिम, हुकुमे चलावै,
राखि लाज, शरम सिरहनमा हे।
घरोॅ के मालिक नै छियै आबेॅ हम्में,
बनी गेलोॅ छियै दरबनवा हे।
मरदोॅ के तोहों तेॅ जनानी बनाय देल्होॅ,
टूटी गेलै मनोॅ के सपनमा हे।
आगिन लागौ तोरा शासन सत्ता में,
उलटा करि देल्होॅ जमनमा हे।
अब नै कहियोॅ तोरा बोट देबौ,
खैलियै हम्मैं ई कसमवा हे।
तोरा राजोॅ में हमरोॅ आबै तेॅ,
फुटी गेलोॅ छै हमरो करममा हे।
जनानी हितोॅ में तेॅ बढ़ियें करलोह
आधो आबादी रोॅ पूरा करलोॅ सपनमा हे
मतुर नै जानै छेलियै हम्में
कि पुरी जैतें सब्भे मरदोॅ के निननमा हे।