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मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
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मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
- पथ ही मुड़ गया था।
गति मिली मैं चल पड़ा
- पथ पर कहीं रुकना मना था,
राह अनदेखी, अजाना देश
- संगी अनसुना था।
चांद सूरज की तरह चलता
- न जाना रात दिन है,
किस तरह हम तुम गए मिल
- आज भी कहना कठिन है,
तन न आया मांगने अभिसार
- मन ही जुड़ गया था।
देख मेरे पंख चल, गतिमय
- लता भी लहलहाई
पत्र आँचल में छिपाए मुख
- कली भी मुस्कुराई।
एक क्षण को थम गए डैने
- समझ विश्राम का पल
पर प्रबल संघर्ष बनकर
- आ गई आंधी सदलबल।
डाल झूमी, पर न टूटी
- किंतु पंछी उड़ गया था।