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गळगचिया (8) / कन्हैया लाल सेठिया
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दूबड़ी कयो - गाय, चर तो भलांई, पण चींथ मती
गाय बोली, कांईं करूं? रामजी म्हारी भूख नै पांगळी को बणाई नीं!