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गैरी खेतको शीरै हान्यो / यादव खरेल

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गैरी खेतको शीरै हान्यो
वर्षायामको दरौंदीले
नौनी जस्तो मेरो मन चिरा पार्यो
उसको रुपको करौंतीले

मर्स्याङ्दीमा जालै हान्यो
माझी दाइले आज
बिहानीमा देखें उसलाई
मात लाग्यो ताज

खोलापारी तारिदिने
तुइनोको फन्को
पहिले माया छुटाइहाल्यो
कलेजीमा रन्को

उसको माया ऐरोपैरो
सावनको भेल
माया भन्नु यस्तै रैछ
मनै चोर्ने खेल