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सेरो र फेरो / रत्न शमशेर थापा

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सेरो र फेरो मेरो, अँध्यारो पारी गयौ २
सुकाई मूल फूल निमोठी फ्याली गयौ

उर्लन्छ यो छाती भित्र व्यथा असह्य भई २
गह भरिन्छ आँशुले रात दिन संधै
आशाको घर मेरो अँध्यारो पारी गयौ २

बिलौना यो मनको निख्रने कहिले होला २
यो जुनीमा सुगन्धी हावा बहने कहिले होला
के को बदला लिई अँध्यारो पारी गयौ