भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक लड़की होना / प्रेरणा सारवान
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:04, 12 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेरणा सारवान |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
माँ!
जब मैं छोटी थी
बहुत छोटी
जब खेलती थी
गुड़ियों के साथ
उड़ती थी
तितलियों के संग
भागती थी
बादलों के पीछे
हँसती थी
स्वच्छन्दता से
जब अन्तर नहीं जानती थी
लड़का और लड़की होने का
तब तुमने मुझे
क्यों नहीं बताया
कि मैं एक लड़की हूँ
इस अल्पायु के
भरे यौवन में
तुमने मुझे
लड़की होने का
दुर्भाग्य बताकर
क्यों उदासी की
काली चुनरी ओढ़ाई है
कि मैं एक लड़की हूँ।