भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नशीला शब्द / प्रेरणा सारवान
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:07, 12 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेरणा सारवान |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कितना नशीला है
वो एक छोटा - सा शब्द
जिसकी अनुभूति से ही
निष्प्राण पड़ने लगते हैं विचार
कोई रंग है न रूप
न गंध है, न सुगंध
नहीं है उसके अस्तित्व को
जरूरत किसी
बोतल या गिलास की
दुखी होकर जब
मैं रोते - रोते
सिरहाने पर रखती हूँ सिर
सीपनुमा डिब्बी में
पलकों के ढक्कन तले
चुपके से आकर
बन्द हो जाता है
वो नशीला शब्द नींद।