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अन्त की ओर / प्रेरणा सारवान

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क्यों गतिहीन
हो गई है सृष्टि
मेरी इस चंचल
दृष्टि में
सूख गए
आँखों के झरने
शब्द - जल
अधरों तक आकर
नहीं खुली
सूखी पंखुड़ियाँ
क्यों रूठ गई
वो भोली परियाँ ( अभिलाषाएँ)
छोटी - छोटी पीड़ाओं का
मिलता नहीं है
कोई छोर
तेज गति से
चला जा रहा है
जीवन
अन्तहीन अन्त की ओर।