भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़ैदी / उदय प्रकाश
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:40, 20 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उदय प्रकाश |संग्रह= रात में हारमोनियम / उदय प्रकाश }} वे ...)
वे तीन थे
और जैसे किसी जेल में थे
भीतर थी एक संकरी-सी कोठरी
जिसके भीतर सिर्फ़ उनका ही संकरा-सा जीवन
और उनकी ही थोड़ी-सी साँसे थीं
एक संतरी की तरह टहलता था
दूसरा वार्डेन की तरह देता था हिदायतें
कविता के सख़्त क़ायदों के बारे में
तीसरे को
दोनों ऎसे देखते थे
जैसे देखा जाता है कोई क़ैदी ।