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ये खता तो हो गई है / रामकुमार कृषक
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ये खता तो हो गई है, की नहीं है जानकर
माफ भी कर दीजिए अब आप अपना मानकर
हम तो नदियों के किनारों पर पले, पीते रहे
आप ही दरअस्ल पीना जानते हैं छानकर
आपके हाथों की मेंहदी तो नुमाइश के लिए
हमने चूमे हाथ वो आए जो गोबर सानकर
जीतकर भी आपकी ही हार से बेचैन हम
आप हैं बैठे हुए हैं दुश्मनी-सी ठानकर
इस शहर में ठीक थे महफूज़ थे हम कल तलक
अब बहुत खतरे में लेकिन आपको पहचानकर