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शीर्षकहीन-३ / गिरधर राठी

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सूख नहीं पाए अभी

धब्बे लहू के

धुले नहीं हैं अभी हाथ

चीत्कारें शांत नहीं हुई हैं अभी


मिलाने लगे हैं हम हाथ

हाथों से,

लेने लगे हैं अंकवार

हत्यारों को,

कंधे हमारे

छिले जा रहे हैं

उन्हीं के कंधों से


सूखे नहीं हैं अभी

ख़ून के फ़व्वारे