भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गळगचिया (55) / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:03, 17 मार्च 2017 का अवतरण
बाँस कयो- मिनख म्हारै फूल लागै न फळ फेर मनै किस्यै लालच स्यूँ जड़ मूळ स्यूँ काटै है ?
मिनख बोल्यो- गुणहीण री थोथी ऊँचाई म्हारै स्यूँ कोनी देखीजै।