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गळगचिया (59) / कन्हैया लाल सेठिया
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रूंख नै अडोेळो कर‘र सगळा पानड़ा झर झर‘र नीचै आ पड़या रूँख बिलखाणूँ हू‘र बोल्यो सँगाळियाँ भलो हेत निभायो ? पानड़ा कयो अरै भोळा अता दिन तो म्हे थारा सिणगार बण र तनै षोभा दीन्ही ही, अबै थारी खुरक बण र तनै नयो जीवण देस्याँ तूँ तो म्हाने धिंगाणैं ही ओलमूँ देवै है।