भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गळगचिया (64) / कन्हैया लाल सेठिया

Kavita Kosh से
आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:31, 17 मार्च 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आभै रै अगूणैं पळसै स्यूँ सूरज आयो‘र आथूंणै पळसै स्यूँ बारै निकळग्यो, बडा आदम्याँ रो आणूँ ही दिन है‘र जाणूँ ही रात है।