काली लड़की / दुर्गाप्रसाद पण्डा
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काली लड़की
अकेली कालेज जाए
गोरी लड़कियों की विद्रूप हंसी पार कर
कोई भी नहीं रखे हिसाब
उसके आने-जाने का।
काली लड़की आये तो क्या, जाए तो क्या
वह चले तो आये नहीं, चाय-कप में तूफान
चमके नहीं बिजली
काली लड़की हँसे तो
उठें नहीं किसी के मन में लहरें।
किसी गरम आलोचना में नहीं होता
काली लड़की का नाम
सबके अपमान को सहज
हज़म कर दे काली लड़की।
दु:ख को साथ लिए घूमे
दीवारों से बातचीत करे
कोई भूल से भी पड़े नहीं
काली लड़की के प्रेम में।
सपने देखने से खूब डरे काली लड़की
और सुबह दर्पण से
उसको लगे सबसे अधिक भय।
अनुवादक : महेन्द्र शर्मा
दुर्गाप्रसाद पण्डा- ओड़िया के नव दृष्टि-संपन्न कवि। दो काव्य-संकलन प्रकाशित। हिंदी-अंग्रेजी में कुछ कविताओं का अनुवाद प्रकाशित। संपर्क : जगन्नाथ कालोनी, बूढ़ा राजा, संबलपुर(ओड़िसा)।