भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ास ज़ुबानी कहता है / विजय वाते
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:00, 26 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते }} वो तो सब की राम ...)
वो तो सब की राम कहानी कहता है|
लेकिन अपनी ख़ास ज़ुबानी कहता है|
रुक पाया कब जीवन दुःख के टीलों पर
चढी नदी से खारा पानी कहता है|
स्याना मानुस ऊँची कुर्सी ओहदे को,
ताश का राजा, ताश की रानी कहता है|
शेर ग़ज़ल का जब भी अछ्छा होता है,
उलझी बाते सरल बयानी कहता है |
इक शायर है "विजय" जो अपनी ग़ज़लों में,
सब की जानी और पहचानी कहता है|