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हे बाबा तुलसीदास / भगवत रावत
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- हे बाबा तुलसीदास / भगवत रावत
(तुलसीदास के एक प्रसिद्ध कवित्त को याद करते हुए)
चोर की चोरी
साहूकारी साहूकार की
दासता दास की
और अफसर का अफसरी
बेईमानी बेईमान की
दरिद्रता स्वाभिमानी की
ग़रीब की ग़रीबी
और तस्कर की तस्करी
दिन दूनी रात चौगुनी
फल फूल रही
कमाई कुकरम की
और अजगर की अजगरी
मज़े में हैं यहाँ सब
हे बाबा तुलसीदास
कविताई ससुरी अब
कहाँ जाय का करी।