कौशल्या / दशमोॅ खण्ड / विद्या रानी
जखनी भरत पादुका लेलकै ।
कौशल्या के रोआँ भुटकी गेलै,
धन्य भरत आरू श्री राम ।
बनलै उदाहरण जगत के धाम,
की लिखलोॅ छै भाग्य अंक में ।
कोय नै सोचै पारै छै,
करम गति में उलटि पुलटि ।
लोग सब जिनगी हारै छै,
राम तेॅ रामे छै भरत भरत छै,
कोय केकरोॅ सें की कम छै।
आज्ञा पालन आरू सन्मार्ग पर,
दुनु भाय के दृष्टि सम छै।
चित्राकूट सें लौटी भरत,
वशिष्ठ, कौशल्या सं आज्ञा लेलकोॅ।
चरण पादुका सिंहासन पर राखि केॅ,
राज चलावे के आज्ञा पैलकोॅ।
भातृ भक्ति में भरत भी,
वनवेश बनाय रहलोॅ कुटिया में।
राजमहल में रानी कौशल्या,
रहलोॅ सुमित्रा कैकेयी संग में।
काल सभै के दुख हरि लै छै,
दिन बितलोॅ जाय लगलै।
बात पुरानो होला पर भी,
वन गमन याद आवेॅ लगलै ।
कौशल्या सुमित्रा संग मिली,
राजभवन मंे रहेॅ लगलै ।
उर्मिला, मांडवी आरू श्रुतिकीर्ति,
सभै के संताप हरेॅ लगलै ।
सीता तेॅ तभियो राम संग छेलै,
उर्मिला असकरी दुखी छेलै ।
मांडवी के तेॅ आरू विछोह,
राजा भरत बनलोॅ मुनि छेलै ।
श्रुतिकीर्ति आरू शत्राुघ्न,
साथे भवन मं रहलोॅ छेलै ।
अयोध्या राज के सबठो कारज,
शत्राुघ्न संभारी रहलोॅ छेलै ।
तीन पटरानी साढ़े तीन सौ रानी,
विधवा वेश मं रहै छेलै उदास ।
जी लागलोॅ छेलै मन टांगलो छेलै,
कबेॅ खतम होतय बनवास ।
मनेमन सब गुनै कौशल्या,
गुनै आरू सिर धुनै कौशल्या ।
इ कैन्हों छै कैकेयी के चतुराई,
राजमहलोॅ मं आग लगैलकी ।
बच्चा भरत राम विरह में तड़पे,
पुरवासिन आँख नित झरै छै ।
हम्में झुठ्ठे कानी रहलोॅ छिये,
राम संग नै गेलिये, नै मरलोॅ छिये ।
कथी लेॅ लौटी केॅ महलोॅ में अयलां,
हमरा बिना इहाँ की हरज छेलै ।
बज्जर बनि इहाँ रहि रहलोॅ छिये,
हमरा बज्जर विधाता बनैलकै ।
जगकत्र्ता सुख दुख दाता,
पुत्रा के वनों में पहुँचाय केॅ अइलियै ।
उथल पुथल देखी केॅ रहलियै,
दुनिया के सब दुख सहलियै ।
हे सखि सुमित्रा, हमरोॅ बात सुनोॅ,
रामलखन सिय के सुख ने पैयलौं।
भरत दिश देखि दशरथ याद करी,
लोग दुखी देखि अति दुख पैयलौं।
राम कहतें ही डोॅर लागै छै,
एतना दुखो में जीवन नै त्यागले छै।
लोग यही कहतै मुसकाय,
केना मुँह दिखावौं कहाँ हम्में जाऊँ।
देखले छौं तोहें दुनु भाय के थोड़ा,
आँखि सें लोर बहै खाय छै घोड़ा।
राम कहतें छटपटाय जाय छै,
रास्ता दिस देखि केॅ हिनहिनाय छै।
बच्चे सें रामलखन पाललै छै,
राजहंस के जोड़ा लागै छै।
राम विरह से बहुत दुखी छै,
निबोला जीव छै उदास मुखी छै।
हे राम तोहें एक बार अइहोॅ,
आपनोॅ घोड़ा सिनी केॅ देखी केॅ।
फिनु वनोॅ मं चललो जइहोॅ,
तोरा बिनु इहाँ केना रहतौं।
दूध पिलाय केॅ तोहें पाललोॅ छौ,
कोमल हाथों सें सहलैलेॅ छौ।
एना एकदमे जे भूलि जइबोॅ,
बतलावोॅ केना जियेॅ पइतौं।
तोरा अति प्रिय जानि भरत,
एकरा सिनी पर खूबै धियान दै छै।
तइयो सुखलोॅ जाय रहलोॅ छै,
कमल जेना पाला मारलोॅ छै।
जौं राम तोरा मिलतौं बटोही,
हमरोॅ संदेश दै दीहो राही।
हुनका बिना कोय नै सुखी छै,
निबोला जीव घोड़ो कानै छै।
चित्राकूट तेॅ कुछु ठीकौ छेलै,
उहाँ तजि राम कण्ड गेलै।
हमरोॅ फूल रंग सुन्दर संतान,
वनवन भटकै छै हे भगवान।