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आँसुओं में नहाए हुए हैं / चेतन दुबे 'अनिल'

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आँसुओं में नहाए हुए हैं।
फिर भी पलकें बिछाए हुए हैं।

शूल से डरता सारा जमाना -
फूल से चोट खाए हुए हैं।

किस तरह भूल मैं उसको जाऊँ-
प्यार बचपन का पाए हुए हैं।

वे भले नीड़ मेरा उजाड़ें-
हम तो दिल में बसाए हुए हैं।

होंठ कैसे सिलूँ यह बता दो-
गीत अधरों पे आए हुए हैं ।

झोपड़ी में करेंगे बसेरा-
महल सपनों के ढाए हुए हैं ।