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कहियो नै हुअें उदास रे / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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चंदन वन में खिलै चाँदनी
मन हमरोॅ मधुमास रे,
मस्त मगन नाचै छै महुआ
शीतल मंद बतास रे ।
फूल गंध सें भरलोॅ छै कानन
भौरा के हास-विलास रे,
छमछम नाचै धरती दुलहन
अंचरा भरी सुवास रे।
पी-पी बोली पिकबैनी थिरकै
मदन मन हाँसै लाल पलास रे,
सतरंगी सपना में डूबलोॅ
पिया मिलन के आस रे।
चार दिन के छेकै जुआनी
चारे दिन कुसुम विकास रे,
कली-कली भरलोॅ पराग सें
चारे दिन मधुमास रे।
विमल प्रेम सें भरलोॅ वसंत छै
विमल-विमल विश्वास रे,
विमल वसंत के विमल जुआनी
कहियो नै हुअै उदास रे।