गीत गैतें रहोॅ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
 गीत हमरोॅ  प्यार के गैतें रहोॅ
सुख सपना में बनी एैतें रहोॅ  ।
रश्मि रथ पर हम्में चढ़लोॅ  एक बाण छेकां,
सात सुरोॅ  में हम्में सजलोॅ  एक तान छेकां।
ठोर पर जे थिरकै मोहक वहेॅ  मुस्कान छेकां,
विरह में जे आकुल रहै ऊ मानिनी के मान छेकां,
तोड़ी केॅ  सब छंद बंधन दुख ताखा पर राखी।
ऐ प्रीत हमरोॅ , कविता बनी एैतें रहोॅ
गीत हमरोॅ  प्यार के गैतें रहोॅ ।
देखोॅ  हमरोॅ  आंखी के परछाई केॅ
साँप रं काटतें ई तनहाई केॅ  ।
गिरलै केनां ई बिजली दुक्खोॅ  के,
दूर ही रहेॅ  आवाज शहनाई के।
करलां बहुत मनुहार पी सुनोॅ  तनी
मन गगन पर मेघ बनी छैतें रहोॅ
गीत हमरोॅ  प्यार के गैतें रहोॅ ।
दूर देलकै के करी आदमी सें आदमी केॅ
डूबलोॅ  छै दुनियाँ देश सीमा में बंधी के ,ॅ
के कहाँ, केनां, मिटैलकै मन रोॅ  सब अच्छाई केॅ
आय आबी केॅ  बचावोॅ  आग सें बस्ती सिनी केॅ ।
मीत मिली हमरा सें आवोॅ , प्रीत के बस्ती बचावोॅ
राग वीणा में विमल सुर भरतें रहोॅ ।
गीत हमरोॅ  प्यार के गैतें रहोॅ ।
	
	