भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आबी रहलोॅ भगवान छै / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:03, 30 मार्च 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गद्दार देश रोॅ देखी लेॅ, आबी रहलोॅ भगवान छै,
यै मांटी पर फेरू आवै लेॅ, व्याकुल उनकोॅ परान छै।
तोरा लूट नीति पर हुनी खूब पछताबै छै
दमन करै लेॅ तोरोॅ आवै लेॅ औकलावै छै,
मस्ती में साँपोॅ रं तोरोॅ जहर उड़ैवोॅ
सच्चे में आवेॅ केकरा कहाँ सुहावै छै।
आभियो तेॅ बाज आवोॅ, चली चुकलोॅ विमान छै
गद्दार देश रोॅ देखी लेॅ, आबी रहलोॅ भगवान छै।

हाथोॅ में उनका गदा, चक्र, शंख आरो पद्म छै,
दीन-दलित आवाज केॅ, उनके तेॅ एक अवलंब छै।
पैरोॅ नीचूं धरती छै, ऊपर में आसमान छै,
दूर रहोॅ गद्धार तोंय, चमकी रहलोॅ कृपाण छै।
माथा मुकुट, हाथ बाँसुरी, ठोरोॅ पर मुसकान छै,
धन्य धरा ई भारत के, आवी रहलोॅ भगवान छै।

शांति संदेशा लैकेॅ हुनी जैतौं, जीयै के गीता मर्म बतैतौं,
तोरा बातोॅ पर गुस्सैतौं, आपनोॅ विराट रूप देखलैतौं।
बांधै के कोशिश नै करिहोॅ, उनकोॅ शक्ति महान छै,
दुष्ट-दनुज तोरा दलै ले, आबी रहलोॅ भगवान छै।

नाश तोरा तेॅ होना छै, तोरोॅ तानाशाही मिटना छै
तरूण देश के तरूण क्रोध में, तोरा जलना-मरना छै
छै तिरंगा, रहतै तिरंगा, होना निश्चय तोरोॅ अवसान छै
फेरू एक नया गीता रचै लेॅ, आबी रहलोॅ भगवान छै।