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समुद्र के बारे में (कविता) / भगवत रावत

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आँख खुली तो
ख़ुद को समुद्र के किनारे पाया
इसके पहले
मैंने उसे पढ़ा था किताबों में

आँखों में फैले
आसमान की तरह
वह फैला था
आकर्षक
अनंत
मैं उसमें कूद पड़ा
खूबसूरत चुनौती के उत्तर-सा
पर वह
जादुई पानी की तरह
सिमटने लगा
देखते-देखते
दिखने लगी तल की मिट्टी
दरकते-दरकते
वह मुर्दा चेहरों में
तब्दील हो गयी
उन चेहरों में एक चेहरा मेरा था

मैं भागते-भागते
किताबों के पास गया
उनके उत्तर के पृष्ठ
गल कर गिर चुके थे
और स्कूलों में
समुद्र के बारे में
वही पढ़ाया जा रहा था
जो कभी
मैंने पढ़ा था।