भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केन्होॅ भुतहा गाँव लगै / आभा पूर्वे

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:56, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आभा पूर्वे |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAng...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

केन्होॅ भुतहा गाँव लगै
शील होय गेलोॅ पाँव लगै

हर पाशा पर पांडव केरोॅ
खाली गेलोॅ दाँव लगै

पत्थर फेकलोॅ करोॅ नै कभियो
केकरो ठाँव-कुठाँव लगै

की होलै कि कोयलो बोली
काँव-काँव बस काँव लगै

समय देखी नै लागौं केकरो
‘आभा’ केॅ तेॅ झाँव लगै ।