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प्रार्थना / आभा पूर्वे

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तमस में घिरा हूँ, गहन अंधकारा
नहीं व्योम में है कहीं एक तारा
प्रभो, यह हटा दो प्रलय का अंधेरा
खुले, खिल के आए सृजन का सवेरा
डरे, डर के भागे सभी अपशकुन ही
रचे सृष्टि कविता विभा की, ये स्याही
बहे रोशनी की वही शांत धारा
तमस में घिरा हूँ; गहन अंधकारा ।

उठे स्वर हमारे गगन को गुंजाए
धरा पर निखिल स्वर्ग ही दौड़ आए
हँसे प्राण, वीणा के सुर में मधुरतम
तभी सिद्ध होगा भी माधव महत्तम
खिले घास के फूल, फूलों का पथ हो
उसी रास्ते पर ही जीवन का रथ हो
प्रभो, पर जरूरत है, तुम हो सहारा
हटा जा रहा है गहन अंधकारा ।