भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पतझड़ का सुख / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:17, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आभा पूर्वे |अनुवादक= |संग्रह=गुलम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पतझड़ के बाद
शेष रह जाता है
प्रकृति में सिर्फ
वीरानियाँ
पर गूँजती रहती है
उन वीरानियों में भी
एक सुमधुर गीत
जो तुम छोड़ जाते हो
चुपचाप
निस्तब्धता के बीच
और
मैं/डूबी खोयी रहती हूँ
अगले पतझड़ तक ।