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मैं नदी होती / आभा पूर्वे
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नदी
जब भी तुम्हें देखती हूँ
तो सोचती हूँ
मैं भी क्यों नहीं हुई नदी
बहती रहती मैं
घाट-घाटों से होकर
कहीं जाल बिछाकर
मछुवारे फाँसते मछली
कहीं किनारे पर
तैरते नंग-धड़ंग बच्चे
और युवक
और कहीं
मुक्ति की आकांक्षा में
नहाते होते सैकड़ों नर-नारियाँ
आचमन करते मेरे जल से
मगर मैं बहती ही रहती
नदी
मैं तुम्हारी तरह नदी माता होती।