भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जवरीमल्ल पारख के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 2 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |संग्रह=दोस्तों...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(यह ग़ज़ल जवरीमल्ल पारख के लिए)
क्यूँ पूछता है तू कि अभी कितनी रात है।
क्या दिन के बाद तेरी दुखों से नजात है॥
बाद उम्र भर के रंज न आई ख़ुशी की रात
ऐ गर्दिशे-मुदाम<ref>सुख-दुख का स्थाई चक्र</ref> तेरी क्या बिसात है।
सीने से ग़म लगाए रहे हम ख़ुशी-ख़ुशी
सबसे यही कहा कि तेरा इल्तफ़ात<ref>कृपा</ref> है।
मग़रूर थे कि छोड़ चले तेरा संगे-दर
यह क्या पता था अपनी वही कायनात<ref>ब्रह्माण्ड</ref> है।
जितना लगाओ ज़ोर ये तोड़ी न जाएगी
ये प्यार की लगन है वफ़ा की सबात<ref>दृढ़ता</ref> है।
आ देख अपना खेल अभी बदमज़ा न हो
मैं हूँ कठिन पहाड़ है बारे-हयात<ref>ज़िन्दगी का बोझ</ref> है।
रोना है गर ज़रूर तो कुछ दूर जा के रो
नाकारा सोज़ ये तो तेरे बस की बात है॥
2002-2017
शब्दार्थ
<references/>