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विनोद सिन्हा के लिए / कांतिमोहन 'सोज़'
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(यह ग़ज़ल विनोद सिन्हा के लिए)
अब तो उसकी दीद<ref>दर्शन</ref> को भी एक ज़माना हो गया।
बनते बनते वाक़या भी एक फ़साना हो गयाII
हम गए तो वां पर उनका दर नहीं हम पर खुला
यूं समझिए इस बहाने आना-जाना हो गयाI
जी को लगता था कि रोना तो बड़ा आसान है
रोए तो आंखों के रस्ते खूं बहाना हो गयाI
हम अभी ज़िंदा हैं मरने की कोई सूरत नहीं
क्यूं लगा दुनिया में अपना आबो-दाना हो गयाI
हम कहें और वो न माने फिर कहें फिर-फिर कहें
ये तो अपने हाल पर जग को हंसाना हो गयाI
एक तरफ़ दस्ते-सितम है एक तरफ़ दीवानगी
दिल हमारा चांदमारी का निशाना हो गयाI
एक हद के बाद रोने का कोई मतलब नहीं
सोज़ अब बस भी करो रोना-रुलाना हो गयाII
25-1-2015
शब्दार्थ
<references/>