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मैंने पाई पीर / कृष्ण मुरारी पहारिया
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मैंने पाई पीर
जितना सुख था लूट ले गई
है मेले की भीर
सब अपनी गति भाग रहे हैं
स्वार्थ सम्हाले जाग रहे हैं
कनक गठरियाँ लाद रहे हैं
मैं रह गया फकीर
सफल हुआ सबका प्रयास है
पाया वैभव अनायास है
आनन-आनन विजय-हास है
मेरे नयनों नीर
04.07.1962