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अपने करीब और जरा और ला मुझे / अमरेन्द्र
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अपने करीब और जरा और ला मुझे
कुछ और उम्र के लिए पागल बना मुझे
हालत अजीब हो गई थी उस घड़ी में तब
जब खुद भी रोने लग गये थे वो रुला मुझे
पहलू में अपने ढूंढता हूँ अपना कलेजा
करना है एक जुल्म का फिर सामना मुझे
मैं सो रहा आकाश के कौफिन में था मगन
कन्धा दिया था पर्वतों ने यूँ लगा मुझे
वह आ रही थी मौत मेरी बाँहें उठाए
समझा कि जिन्दगी ही है धोखा हुआ मुझे
मुन्सफ की मुन्सफी भी जमाने में देख ली
उसने किया था जुर्म, मिली है सजा मुझे
मैंने दिलों की देखी हैं गहराइयां 'अमरेन्द्र'
प्याला तू मैकदे का न सागर दिखा मुझे।