रिवाजो-रस्म की बातें पुरानी ढूँढता हूँ / अमरेन्द्र
रिवाजो-रस्म की बातें पुरानी ढूँढता हूँ
मैं अपने दादा-दादी की कहानी ढूँढता हूँ
ये उसका जानी जंगल है जहाँ मुद्दत से मैं
तुम्हारा प्यार कोमल जाफरानी ढूँढता हूँ
जो मंजिल तक मुझे पहुँचा दे बिन धोखा लगाए
घने जंगल में नक्शे पा, निशानी ढूँढता हूँ
लहू की धार मेरी जम गई है भूल कर यह
यहाँ पत्थर-पहाड़ों में रवानी ढूँढता हूँ
तुम्हारे शेर में मीटर-बहर कुछ भी न ढूँढू
कोई जज्बः तसव्वुर जाविदानी ढूँढता हूँ
बहुत था नाज हिन्दुस्तानियों को हम हैं सोहम्
कहाँ वह खो गई ताकत रूहानी ढूँढता हूँ
लिखा जिसमें मेरे बचपन की बातें मन की बातें
वही बातें वही किस्सा-पिहानी ढूँढता हूँ
हँसी रोके नहीं रुकती थी तब शहरी लोगों से
सुना जब शहर में मैं जिन्दगानी ढूँढता हूँ
जो रेतों को भी दरिया में बदल देती थी अक्सर
बुढ़ापे की नसों में वह जवानी ढूँढता हूँ
फलेगी आदमीअत की फसल अमरेन्द्र जिससे
जमाने भर की आँखों में वो पानी ढूँढता हूँ।