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हम तो नहीं होंठों से कहेंगे, ‘काट ली क्यों आँखों में रात’ / गुलाब खंडेलवाल

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हम तो नहीं होंठों से कहेंगे, ‘काट ली क्यों आँखों में रात’
पूछ लो अपने आप से ख़ुद ही, अब ये कहाँ पहुँची है बात

झेलने को सब झेल ही लेंगे, दिल के लिए है एक-सी बात
चाल ये पर कैसी है तुम्हारी, जीत के भी हम हो गये मात !

आज तो मन की प्यास बुझा दो,कल हों कहाँ हम, किसको पता!
डाल में फिर से जुड़ न सकेंगे टूटे हुए पीपल के पात

यों तो कभी उस चितवन से भी प्यार की ख़ुशबू आती थी
पर थी उन्हें मिलने में झिझक क्या, आँखों ही आँखों कर गये घात !

चाँदनी फीकी पड़ने लगी है, उड़ने लगा है चाँद का रंग
आके गुलाब को देख भी लो अब, बीत न जाये प्यार की रात