भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ और शेर / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:17, 1 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह |संग्रह=सुकून की तलाश / शमशेर बहादुर ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(जो एक शादी के मौक़े पर कहे गए)

गुलशन से जो इतराती आंगन में बहार आई

ख़ुशज़ौक़ दुल्हन उसकी शोख़ी को सँवार आई।


यह कौन निगार आया, फिर बाँगे-हज़ार आई

कलियों पे निखार आया, फूलों पे बहार आई।


फिर शोरे-अनादिल है, फिर गुंचे परीशाँ हैं :

ए बादे-सबा, लेकर क्या नामए-यार आई?


हर एक शगूफ़ा यह कहता हुआ खिलता है।

"शायद कि बहार आई! शायद कि बहार आई!"

(1945 में रचित)