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झर गये पात / बालकवि बैरागी

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      झर गये पात 

बिसर गई टहनी करुण कथा जग से क्या कहनी ?

नव कोंपल के आते-आते टूट गये सब के सब नाते राम करे इस नव पल्लव को पड़े नहीं यह पीड़ा सहनी

झर गये पात बिसर गई टहनी करुण कथा जग से क्या कहनी ?

कहीं रंग है, कहीं राग है कहीं चंग है, कहीं फ़ाग है और धूसरित पात नाथ को टुक-टुक देखे शाख विरहनी

झर गये पात बिसर गई टहनी करुण कथा जग से क्या कहनी ?

पवन पाश में  पड़े पात ये 

जनम-मरण में रहे साथ ये "वृन्दावन" की श्लथ बाहों में समा गई ऋतु की "मृगनयनी"

झर गये पात बिसर गई टहनी करुण कथा जग से क्या कहनी ?