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बूढा घर री साख हुवै / गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

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बूढां रो अपमान कर्यां सूं, मिनख जमारो खाख हुवै।
बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।।
    इक दिन सबनै बूढो होणो, इणमें मीन न मेख सुणोे।
    चार दिन रो जोश जवानी, पछो बुढापो पेख गुणोे।।
    शैशव, बाळपणो’र जवानी, अगलो आश्रम दे ज्यावै।
    ओ बुढापो कछु नहीं देवै, जीव तकातक ले ज्यावै।
    मिटसी महल, ठहरसी गाडी, आं रिपियां री राख हुवै।
    बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।। 01।।

  बूढा अनुभव समद अपारा, ज्ञान-गंग री धारा है।
            बूढा मेढ कडूंबै री है, बूढा इमरत झारा है।
            बूढा मूरत महादेव री, जोगमाया री जोती है।
            बूढा वीणा मां सारद री, बूढा उजळा मोती है।
            बूढां री आसीस फळै है, अेक-अेक रा लाख हुवै।
            बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।। 02।।

रात-दिवस बेबस बतळावै, लाचारी री आंख लियां।
बकरो पूत कसाईघर में, मात करै फरियाद जियां।
डर-डर मर-मर टेम बितावै, घालै जिसड़ी खा लेवै।
पत राखण परिवार तणी, (अै) पत्थर नैं भी पचा लेवै।
जिण घर माण नहीं बूढां रो, (बै) पाक नहीं नापाक हुवै।
बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।। 03।।

            जिकण ठौड़ है आज बूढिया, कालै थूं अर म्हैं होस्यां।
            अै दिन याद आवैला मरवण, रह-रह-रह दोनूं रोस्यां।
टाबर टोगडि़या टाळैला, आपां आंसू ढळकास्यां।
खाय न कुत्ता खीर कामणी, हाथ मसळता पछतास्यां।
बूढां रो हक मार मतीना, हक मार्यां हकनाक हुवै।
बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।। 04।।

मंदिर जाणा, भोग लगाणा, रात जगाणा भूल भलां।
दीया-बाती, संध्या-वंदण, चंवर ढुळाणा भूल भलां।
बरत-बड़ूल्या, कथा-कहाणी, तीरथ-पाणी भूल भलां।
जात-झड़ूला, भैरूं-भोपा, सगळा स्याणी भूल भलां।
बस बूढां री ठार आतमा, अन-धन-लिछमी लाख हुवै।
बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।। 05।।

 देखे ज्यूं सीखै है टाबर, सीखै जिसड़ी ही करसी।
 सागण आ बोली बोलैला, ‘अै डोकरिया कद मरसी।’
 इक-इक बोल सूळ ज्यूं चुभसी, छेक काळजै आवैला।
 दाझ्यै लूण नाखबा टाबर, अै दिन याद दिरावैला।
 धन-जोबन धरिया रह ज्यासी, बूढापो बजराक हुवै।
 बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।। 06।।
   
उपकारां रो फरज कदैई, अपकारां सूं नीं चूकै।
जियां लियोड़ो करज उधारो, नाकारां सूं नीं चूकै।
कितरा समझौता स्वीकार्या, जद आपां आबाद हुया।
आपां री सुख फसल फळाबा, माटी रळ नैं खाद हुया।
आं री दुआ सात सुख दायक, हाय उकळती राख हुवै।
बूढा थारी-म्हारी सोभा, (अै) बूढा घर री साख हुवै।। 07।।