भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

करै कुण कोड बेटी रा / गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:14, 7 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गजादान चारण ‘शक्तिसुत’ |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

करै कुण कोड बेटी रा, खड़्या खम ठोर मारण नैं।
जगत में आण सूं पै‘ली, जकी रा लाख दुश्मण है।।
हुई जद आस आवण री, नयो मेहमान निज घर में।
बधायां बांटती दादी, फिरी हर एक घर-घर में।।
मिली जद जाँच में बेटी, लगी क्यों लाय लागण नै।
करै कुण कोड बेटी रा, खड़या खम ठोर मारण नै।।
जगत में आण सूं पै‘ली, जकी रा लाख दुश्मण है।।
तात रै लाज री पगड़ी, मात रै हेत हिवड़ै रो।
भ्रात रै पाठ मरजादा, नाथ रै नेह जिवड़ै रो।।
जकां सूं नेह रो नातो, अड़थड़ै आप मारण नै।
करै कुण कोड बेटी रा, खड़या खम ठोर मारण नै।।
जगत में आण सूं पै‘ली, जकी रा लाख दुश्मण है।।
       
जनक रै स्नेह रो सागर, सूकग्यो एक सटकारै।
तिड़कगी भाव तिजोरी, नीठग्यो नेह फटकारै।।
कसाई हाथ ले ऊभा, कतरण्यां गात काटण नै।
करै कुण कोड बेटी रा, खड़या खम ठोर मारण नै।।
 
कोख रै मांय नै कैंची, काळजो देख कुरळायो।
छूटग्यो धीर धरती रो, गगन गंभीर घबरायो।।
मौन मुख धार महतारी, हुई तैयार हारण नै।
करै कुण कोड बेटी रा, खड़या खम ठोर मारण नै।।
भ्रात रो हाथ सूनों है, मात निज मातपण खोवै।
पात सूं हीण तरवर ज्यूं, जात रो न्यातपण रोवै।।
काट दी कोख में कन्या, कसायां हेत हारण नै।
करै कुण कोड बेटी रा, खड़या खम ठोर मारण नै।।
कर्या टुकड़ा किता तन रा, कै मन में सोच नीं लायो।
धरा री लाडली सामै, मिनख रो माजनों आयो।।
हुयो मजबूर समदर भी, सुनामी रूप धारण नै।
करै कुण कोड बेटी रा, खड़या खम ठोर मारण नै।।
गगन सूं जहर बरसैला, धरा खुद आग उगळैली।
रूंखड़ा रोय सुखैला, पवन निज चाल चुकैली।।
हुवैलो को’ढ काया रै, राखज्यो याद चारण नै।
करै कुण कोड बेटी रा, खड़या खम ठोर मारण नै।।
जगत में आण सूं पै‘ली, जकी रा लाख दुश्मण है।।