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प्रत्युत्तरमा व्यक्त इच्छाहरू / उषा शेरचन

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सगरमाथाझैँ शिर उचाल्न सिक भन्छौ तिमी…
हिटलरले उचालेको शिरले
विश्वयुद्ध जन्मायो
सम्पूर्ण विश्वलाई त्रसित पार्यो
म चाहन्नँ, मैले उचालेको शिरले
मानवता ओइली झरोस्।

सागरझैँ गहिरिन सिक भन्छौतिमी…
बुद्धको शान्तिसन्देशले अझै
हिंसा रोक्न सकेको छैन
दानवता मार्न सकेको छैन
म चाहन्नँ, मैले रोपेको शान्तिले
निर्बलता कोपिलाओस्।

इतिहासको पात्र बन्न सिक भन्छौ तिमी…
म जन्मेको युगमा कतै
नौलो बिहान छैन
नौलो दिन छैन
म चाहन्नँ, दोहोर्याएको इतिहासले
भावी सन्तति रुमल्लियोस्।