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सावन बनकर आऊँगा / राहुल शिवाय

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करुणा कलित हृदय में उठती
विरह व्यथा में करुण हिलोरें।

पतली-दुबली बुझती लौ को
थोड़ा ज्यों ईंधन मिल जाता,
जैसे पलभर घने-घनों से
सूर्य निकलकर सम्मुख आता।
वैसे, सोच कनिष्ठ सुखद पल
खिल जाती अधरों की छोरें।
करुणा कलित हृदय में उठती
विरह व्यथा में करुण हिलोरें।

अलसायी - सी मध्य-निशा में
ज्यों मादक नूपुर का वादन,
जैसे महक रहा हो वन में
विषधर से लिपटा तरु चन्दन।
वैसे प्रिया-स्मृति है करती
शीतल, सजल नयन की कोरें।
करुणा कलित हृदय में उठती
विरह व्यथा में करुण हिलोरें।