Last modified on 9 मई 2017, at 01:44

चन्द्र-जेता सँ / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:44, 9 मई 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ज्वालामुखी रहैत
चाँद शीतल छथि
मुदा हिमालय आ
सागर सँ भरल भू?
आगि सन धीपल।
मानव-मानव में मेल नहि
टाका लेल उलटे हम दानव
सुनु कान खोलि चन्द्र जेता सब
चाँद पर गेने की भेल?
जँ छूटल नहिं धरती केर कानब!

-स्वदेश वाणी, 1967, वैद्यनाथ देवघर, सं.प. अब झारखंड