भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब वह प्यार नहीं / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:06, 10 मई 2017 का अवतरण
मेरी आँखों के नीर तुम्हें
बहने का है अधिकार नहीं।
जो तुमको निधि कहकर रोके
जीवन में अब वह प्यार नहीं।।
है रहा कहाँ कुछ जीवन में
बस बचे अधूरे सपने हैं,
जिसमें है भाव-समर्पण का
जो अपनों से भी अपने हैं।
अब सिहर-सिहर इन सपनों को
पंकिल करना स्वीकार नहीं।
विचलित उर-अम्बुधि-लहरों में
को विरह व्यथा का ज्वार बहुत,
दुख से अकुलाए अधरों में
है दारुण-दुखद पुकार बहुत।
कम होगा नहीं विरह आतप
दो व्यर्थ अश्रु उपहार नहीं l
सुन जिसने भी दुख को पाला
वेदना लहर उसके मन में,
जो आँसू व्यर्थ गँवाओगे
करुणा खोएगी जीवन में।
जिस उर में प्यार बसा प्रिय का
अब भरो वहाँ अंगार नहीं।